भोपाल। तकनीक भी क्या चीज़ है; इसके चलते कुदरत के नियम भी बदल जाते हैं। मसलन, गाजर, मूली, मैथी, मटर, फूल गोभी, पत्ता गोभी आदि सब्जियों का मज़ा लेने के लिये अब आपको सर्दी के मौसम का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं होगी। अब ये शीतकालीन सब्जियाँ बारहों महीने उपलब्ध होंगी।
मध्यप्रदेश के कई जिलों में ‘‘पॉली हाउस’’ तकनीक से अब ये सब्जियाँ पूरे साल पैदा की जा रही हैं। इन पॉली हाउसों में महँगे सजावटी फूलों की भी अच्छी फसल हो रही है, जिनमें डच रोज़, जरबेरा, कार्मेसेन्ट आदि शामिल हैं।
शाजापुर के पतोली गाँव के किसान मोईज़ खान ने तो कमाल ही कर दिखाया है। वे अपने तीन पॉली हाउसों में कलर केप्सीकम उगाते हैं। यह एक रंगीन शिमला मिर्च है, जो देश-विदेश के फाइव स्टार सहित बड़े होटलों में सलाद तथा चाइनीज फूड में प्रमुखता से उपयोग में लाई जाती है।
बातचीत में मोइज़ खान ने बताया कि उनकी यह रंगीन शिमला मिर्च अरब देशों तक जाती है। उनके पास एक-एक हज़ार वर्ग मीटर के तीन पॉली हाउस हैं। प्रत्येक में वार्षिक उत्पादन 25-25 टन होता है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक का इस्तेमाल कर कोई भी किसान एक हज़ार वर्ग मीटर के पॉली हाउस से हर माह पंद्रह से बीस हज़ार Rs. कमा सकता है। खुद मोइज़ भाई एक-एक पॉली हाउस से साल में करीब दो लाख रुपये का मुनाफा कमाते हैं।
श्री मोइज़ ने बताया कि यह तकनीक इजराइल और हॉलैण्ड में खूब अपनाई जाती है। दो तरह के ग्रीन हाउस होते हैं- नेचुरली वेन्टीलेटेड और फेनपेड। भारत में पहला ज्यादा प्रचलन में हैं, क्योंकि इनमें बिजली की ज़रूरत नहीं होती। इजराइल और हॉलैण्ड में यह तकनीक फूलों की खेती में उपयोग में आती है। भारत में इसका इस्तेमाल सब्जियों की खेती में भी किया जाने लगा है।
सीहोर जिले के आमरोद जिले के छोटे किसान गजराज सिंह भी पॉली हाउस तकनीक को अपना कर काफी खुश हैं। अभी उनके यहाँ मैथी लगी है। उनका कहना है कि आम तौर पर मैथी दिसम्बर तक आती है, लेकिन वे इसे इसी माह या अगस्त में बाज़ार में ले आयेंगे। उन्हें अपने पॉली हाउस से हर माह पंद्रह से बीस हज़ार रुपये कमाने की उम्मीद है।
पॉली हाउस तकनीक का उपयोग संरक्षित खेती के तहत किया जा रहा है। इसमें किसी खास क्षेत्र में जलवायु को नियंत्रित करके ऑफ-सीजन खेती की जाती है। इस नियंत्रित स्थिति में ड्रिप पद्धति से सिंचाई की जाती है। इससे तापमान और आद्रता नियंत्रित रहती है। इसे कृत्रिम खेती भी कहा जा सकता है, जिसमें जब जो चाहें वो उगा लें। इससे पैदा होने वाली सब्जियाँ जल्दी खराब नहीं होती और कम जगह तथा कम पानी में ज्यादा उत्पादन हो जाता है। खुले में पैदा टमाटर तीन-चार माह चलता है, जबकि पॉली हाउस का टमाटर ग्यारह माह तक खराब नहीं होता। पॉली हाउस में एक बेल से 30-40 किलो ककड़ी निकलती है।
राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन के अंतर्गत इस कार्य के लिये यूनिट लागत 935 Rs. प्रति वर्गमीटर की दर से दी जाती है। मिशन के तहत इसमें 50 प्रतिशत राशि किसान को दी जाती है, चाहे वह किसी भी वर्ग का हो। फिलहाल प्रदेश में सीहोर, भोपाल, इंदौर, खरगोन, छतरपुर, विदिशा, रायसेन, उज्जैन, देवास और शाजापुर जिलों में लगभग 50 हजार वर्गमीटर में पॉली हाउस तकनीक अपनाई गयी है।
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