खिरकिया । '' प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का कार्य '' यह बात कहते तो सभी है पर लगता है कि यह सूत्र वाक्य सिर्फ उपदेशों तक ही सीमित रह गया। क्योंकि अब बाजारवाद की अंधाधुंध दौड़ में पानी भी बिकने लगा है। भारतीय संस्कृति का प्याऊ से पाऊच की ओर पतन होना दुर्भाग्यपूण है। वैसे समय, काल और परिस्थितियों के कुचक्र में परम्पराओं में बदलाव आना नियति का क्रुर सत्य बन चुका है। फिर भी कुछ परम्पराएं ऐसी होती है। जिनका बदल जाना मन को अशांत करता है।
ज्यादा समय नहीं हुआ, अभी कुछ वर्षो पूर्व तक कस्बों शहरों और महानगरों में ग्रीष्म ऋ तु आरंभ होते ही जगह जगह प्याऊ खुल जाया करते थे। सामाजिक संस्थाओं, सांस्कृतिक संगठनों और उदारमना दानवीरों के सहयोग से शीतल जल की इन प्याऊओं से राहगीरों के कण्ठ तर हो जाया करते थे। लेकिन शनै:शनै: इन प्याऊओं की संख्या में कमी आने लगी है। अब तो इक्का-दुक्का प्याऊ ही दिखाई देती है। अलबत्ता पानी के पाऊच की दुकानें ही ज्यादा नजर आती है।
मवेशी भी होते है परेशान
पहले जगह जगह हौद बनवाकर मवेशियों के लिए पानी भरवाया जाता थ्ाा। किंतु बीते कुछ वर्षो से ये हौद या तो अतिक्रमण की भेंट चढ गई है या पानी की कमी के चलते नदारद हो गई है। नतीजतन इन मूक प्राणियों को पानी के लिए इधर-उधर भटकते देखा जा सकता है।
पानी की कमी भी है एक कारण
प्याऊ परंपरा के लुप्त होने के पीछे पानी की कमी भी एक मुख्य कारण है क्योंकि ग्रीष्म ऋतु शुरू होते ही लोगों को अपनी घरेलू जरूरतें पूरी करने की जुगाड़ में लगे रहना पड़ता है, तो ऐसे में औरों के लिए पानी कहां से लाएं। वैसे लोगों की व्यस्ताओं से भी इस सेवा कार्य में व्यवध्ाान आया है।
नल बन गए शो-पीस
बहुधा देखा गया है रेलवे स्टेशनों और बस स्टेण्डों पर पीने के पानी के जो नल लगे रहते है या शानदार मारबल कक्ष में वाटर कूलर लगे रहते है वे भी गर्मी के दिनों में दम तोड़ जाते है। शासकीय मशीनरी अथवा प्रशासनिक इकाइयों की अनदेखी की वजह से ये सारी व्यवस्थाएं प्यासे यात्रियों का मुहं चिढ़ाती नजर आती है और यात्रियों को मजबूरन 15 से 20 रूपये लीटर का पानी खरीदना पड़ता है ।
पन्नियों का उपयोग न करें
हरदा। हम शपथ लेते हैं कि पन्नियों का प्रयोग कम करेंगे, जहाँ कहीं भी पन्नियां दिखेंगी उन्हें व्यवस्थित स्थान पर एकत्र करेंगे। इस प्रकार की शपथ शनिवार को हंडिया स्थित नमर्दा घाट पर अधिकारियों के साथ ग्राम के सरपंच और ग्रामीणों ने ली।
जानकारी के अनुसार जिला प्रशासन द्वारा बनाई गई कार्ययोजना के तहत् शनिवार को ग्राम विकास प्रस्फुटन समिति हंडिया द्वारा ने ग्राम में एक रैली निकालकर लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास किया। इस दौरान जिला पंचायत की रोजगार गारंटी शाखा, समग्र स्वच्छता शाखा, जनअभियान परिषद, जनपद पंचायत, स्वास्थ विभाग के साथ नेहरू युवा केन्द्र के सदस्यों , अधिकारियोंल हरदा नपाध्यक्ष हेमंत टाले सहित ग्रामीणों ने गाँव की सभी गलियों से पन्नी एकत्र की। ऋद्धनाथ मंदिर के समीप से अभियान की शुरूआत की गई। कलेक्टर रेनु पंत, नपाध्यक्ष हेमंत टाले, जिपं सीईओ आरएन शर्मा, डिप्टी कलेक्टर श्वेता पंवार, एसडीएम संतोष वर्मा, तहसीलदार केके पाठक, नायब तहसीलदार महेन्द्र प्रताप सिंह, सीएमएचओ जेएस अवास्या, हरदा डिग्री कालेज के चेयरमेन गिरीश सिंहल के अलावा अनेक आला अधिकारी और पत्रकार गण वहाँ मौजूद थे। श्री टाले ने संबोधन के दौरान कहा कि हमे इस प्रकार के अभियान में तन मन से कार्य करना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की कहीं यह औपचारिकता बनकर न रह जाए। कलेक्टर श्रीमती पंत ने कहा कि प्लास्टीक का प्रयोग हमारे लिए नुकसानदायक है। इसके अधिक प्रयोग से हमें बचना होगा। जहाँ भी प्रयोग होता हो वहाँ इसे व्यवस्थित करने की जरूरत है। आयोजन के दौरान नेहरू युवा केन्द्र के सदस्यों द्वारा नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का संचालन ओपी मुकाती ने आभार जिला पंचायत सीईओ ने व्यक्त किया। इस अभियान में हंडिया के सरपंच लाल खाँ, अवंतिका प्रसाद तिवारी सहित अन्य लोगों ने सहयोग किया।
बोरी बंधान बनाया
हंडिया से लौटते समय अधिकारियों ने कबीट वाले नाले पर एक बोरी बंधान का निर्माण किया। कलेक्टर की उपस्थिति में अधिकारियों ने पानी को सहेजने का इंतजाम किया। इस दौरान पत्रकारों ने भी व्यवस्था में सहयोग किया।
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